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Economic Crisis: देश की बदहाली के लिए मौजूदा मौद्रिक नीति (Monitory Policy) जिम्मेदार


आरबीआई की एक पक्षीय मौद्रिक नीति से अर्थव्यवस्था रसातल में


मो. इफ्तेखार अहमद,
देश में दिनों-दिन महंगाई (Inflation) आसमान छूती जा रही है। इस सुरसा पर नियंत्रण करने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (Reserve Bank Of India) की ओर से किए जा रहे सारे उपाय भी नाकाफी साबित हो रहे हैं। मूल्य वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने वित्त वर्ष 2011 में मुख्य दरों (कैश रिजर्व रेसियों (CRR) और रेपो रेट (RR)) में 3.७५ प्रतिशत वृद्धि किया था। आरबीआई (RBI) के इस कदम से ब्याज दरों (Interest Rate) में भी भारी वृद्धि दर्ज हुई है, जिसका नतीजा ये हुआ कि आज बैंकों का संतुलन बिगड़ रहा है। बैंकों में पैसा जमा तो हो रहा है, लेकिन लोन लेने वाले सामने नहीं आ रहे हैं. 

    इससे पता चलता है कि आरबीआई बाजार में तरलता कम करने की अपनी नीति में तो पूरी तरह कामयाब रहा है। लेकिन, महंगाई पर काबू पाने में पूरी तरह विफल। जिसके कारण महंगाई अब भी सुरसा की तरह मुह बाए खड़ी है। उद्योगजगत और शेयर बाजार महंगाई की मार से बेहाल है और सरकार लाचार।

    दरअसल आरबीआई मांग आधारित मौद्रिक नीति पर काम कर रहा है, जिसके तहत 2010-11 में 13 बार मुख्य दरों में वृद्धि की गई। इसका मुख्य उद्देश्य ब्याज दरों को ऊंचा बनाए रखना था। ताकि, आम आदमी के हाथ में तरलता को सीमित रखा जा सके। यानी जब ब्याज दरें ज्यादा होंगी तो लोग ज्यादा ब्याज के लालच में अपनी रकम खर्चने के बजाए बैंकों में जमा करेंगे, और महंगा ब्याज दर होने के कारण लोन लेने की प्रवृति में कमी आएगी। लिहाजा जो पैसा मार्केट में जाना था, उसे बैंकों में पहुंचाकर मांग को प्रभावित किया जाता है, ताकि वस्तुओं की मांग प्रभावित (कम) होने से मूल्यों में कमी आए, लेकिन, यहां पूर्ति पक्ष को पूरी तरह दरकिनार कर दिया जाता है, जबकि हकीकत ये हैं कि मूल्यों के निर्धारण में मांग और पूर्ति दोनों की समान सहभागिता होती है।  

 अगर बाजार में किसी वस्तु की पूर्ति अधिक होगी और मांग कम तो कोई भी विक्रेता अपने सामान को सड़ाने या एक्सपायरी होने से बचाने के लिए स्वत: ही कम दामों पर बेचने के लिए तैयार हो जाता है, जिससे वस्तुओं के मूल्यों में गिरावट आती है।

    सच्चाई ये है कि रिजर्व बैंक मुख्य दरों में वृद्धिकर विलासिता की वस्तुओं की मांग को तो प्रभावित कर सकता है, लेकिन यह खाद्य पदार्थों जैसी अतिआवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में कतई भी गिरावट नहीं ला सकता है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति ब्याज के लालच में अपनी विलासिता की वस्तुओं की खरीदी तो भविष्य पर टाल सकता है, लेकिन भोजन करना नहीं छोड़ सकता है। यही वजह है कि ब्याज दरों में बेतहाशा वृद्धि के बाद भी मुद्रास्फीति कम होती नजर नहीं आ रही है।

    दूसरी ओर रिजर्व बैंक की मांग आधारित मौद्रिक नीति के कारण अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए जरूरी, मांग और आपूर्ति दोनों ही प्रभावित हो रहे हैं। ब्याज दर ज्यादा होने से एक तरफ महंगी पूंजी के कारण कंपनियों का उत्पादन प्रभावित हो रहा है, वहीं दूसरी ओर मांग कम होने से लाभ में भी कमी आ रही है, जिससे कंपनियां अपने कर्मचारियों के वेतन में कटौती करने या फिर छंटनी करने पर मजबूर हो रही है। जिसका अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

         ब्याज दर ज्यादा होने से अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी समझे जाने वाले बुनियादी ढांचे के निर्माण में जुटी कंपनियां अपनी पूर्ण क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर पा रही हैं, जिससे नई नौकरियों के अवसर पैदा नहीं हो रहे हैं और समाज के निम्न तबकों में बेरोजगारी बढ़ रही है। यानी रिजर्व बैंक की मौजूदा नीति से चारों ओर बुरा असर पड़ रहा है।

    2008 की वैश्विक और मौजूदा मंदी की आहट से अगर आज भारत न के बराबर प्रभावित हुआ है तो इसकी मुख्य वजह है देश में बुनियादी ढाचे के विकास (मनरेगा और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना) पर किया जाने वाला भारी निवेश है। इन योजनाओं से समाज के निचले तबके को रोजगार मिलने से तरलता भी निचले स्तर पर बनी रहती है, जो अर्थव्यवस्था को सींचने का काम करता है।

    लिहाजा, मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए रिजर्व बैंक को मांग आधारित मौद्रिक नीति के साथ ही मूल्यों में कमी लाने के लिए पूर्ति को बढ़ाने पर भी ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि मूल्यों को स्थिर रखने में जितना योगदान मांग पक्ष का है, उतना ही पूर्ति पक्ष का भी है। इसके लिए जरूरी है कि मौद्रिक नीति वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक के सहयोग से तैयार हो, क्योंकि ब्याज दरें बढ़ाना तो आरबीआई के हाथ में है, लेकिन पूर्ति बढ़ाने का काम केवल सरकार ही कर सकती है। इसके अलावा सटोरियों द्वारा बनावटी मांग पैदाकर वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि के लिए जिम्मेदार वायदा कारोबार को बंद करने की जरूरत है।

2 comments:

  1. महंगाई हमारी प्राथमिकता

    नई दिल्ली. केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदम्बरम ने जल्दी ही महंगाई के नीचे आने का विश्वास व्यक्त करते हुए कहा है कि कीमतों में स्थिरता लाना सरकार की प्राथमिकता है। वित्तमंत्री का पदभार संभालने के बाद सोमवार को संवाददाता सम्मेलन में चिदम्बरम ने कहा कि कीमतों में स्थिरता लाना सरकार की प्राथमिकता है।
    कीमतों में स्थिरता गरीबों के लिए बहुत जरूरी बताते हुए उन्होंने कहा कि दामों पर दबाव है और विशेषकर खाद्य महंगाई ऊंची है। महंगाई के कारण जगजाहिर हैं। इन कारणों में कच्चे तेल की कीमत और आयातित ङ्क्षजसों के दाम हमारे नियंत्रण से बाहर हैं, ङ्क्षकतु कुछ अन्य को दृढ़ता के साथ काबू में किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार आपूॢत में आ रही बाधाओं को दूर करने के लिए कदम उठाएगी और कीमतों को नीचे लाने के लिए जब भी जरुरी होगा अपने खाद्यान्न भंडार का इसके लिए इस्तेमाल करेगी। आपूॢत की कमी को दूर करने के लिए जल्दी ही ङ्क्षजसों का आयात बढ़ाया जाएगा।
    वित्तमंत्री ने कहा कि अखाद्य महंगाई दर पहले ही नीचे आ रही है। हमें विश्वास है कि मध्यकालिक अवधि में महंगाई भी नीचे लाई जा सकेगी। वित्तीय और मौद्रिक नीति में इसे ध्यान में रखकर कदम उठाए जा रहे हैं। सरकार और रिजर्व बैंक मिलकर यह सुनिश्चित करेंगे कि मध्यकालिक अवधि में महंगाई को नीचे लाया जा सके। वर्तमान ब्याज दरों को ऊंचा बताते हुए चिदम्बरम ने कहा कि इससे निवेशक पर असर पड़ता है और कर्ज लेने वाले प्रत्येक वर्ग पर इसका बोझ पड़ता है। चाहे यह वस्तुओं का विनिर्माण हो या आवास अथवा दुपहिया खरीदार या छात्र जो शिक्षा के लिए कर्ज लेता है। सरकार ब्याज दरों को नीचे लाने के उचित कदम उठाएगी।

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  2. aslm alkm
    sarkar ki neeti mahgai ko kabu nahi kar sakti jab tak ki sarkar kathor kadam nahi uthati... desh ka 75% paisa aise yojnao me lag raha jiska koi matlab hi nahi. sarkari yojnao jaise bandh, talab, sadak, building, banaye gaye aur khandhhar ho gaye, talab bane koi matlab nahi, kuwe khode gaye jarjar ho gaye. aur bacha kucha paisa narega aur manrega me hajam ho gaye. sarkari samrthan mulya badha diya gaya jisse aanaj mahaga ho gaya. aur sarkar rasoi gas diejal petrol ka dam badha rahi jisse mahagai to badhegi hi. aur aam aadmi tak jo sadsity direct pahuch rahi thi wo bhi khatam ho jayegi..

    agar desh ko majbut banana hai aur mahagai ko kabu me karna hai to sarkari yojnao ko soch samajh kar lagu kare na ki vote bank ki khatir....

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