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जलवायु परिवर्तन रोकने में धर्म अहम


इंडोनिशियाई उलेमा और थाई बौद्ध भिक्षु बने आदर्श

मोहम्मद इफ्तेखार अहमद,
 आमतौर पर धर्म को विवादों और संघर्षो की जननी के तौर पर देखा और वर्णन किया जाता है। साम्यवादी विचारक कार्लमार्क ने धर्म को अफीम तो विख्यात कवि हरिवंश राय बच्चन ने धार्मिक केन्द्रों को लड़ाई झगड़ों का अड्डा बताते हुए लिखा था। ' मस्जिद मंदिर बैर कराते, मेल कराती मधुशालाÓ, लेकिन यही धर्म अब मानव अस्तित्व पर खतरे की घंटी बजा रहे ग्रीन हाउस गैसों को रोकने में अहम साबित हो रहे हैं। इंडोनिशिया के मुसलमान और थाईलैंड के बौद्ध भिक्षु द्वारा वातावरण के लिए जो कार्य किया है, वह अनुकरणीय है। दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले इंडोनिशिया में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक अहम जंग चल रही है। हर श्क्रवार को जुमे की नमाज के दौरान इमाम ग्रीन इस्लाम का संदेश देते हैं। मदरसों में बच्चों को पर्यावरण के बारे में बताया जाता है। हरियाली बढ़ाने के लिए कहा जाता है। मदरसों में दीनी तालीम के अलावा पेड़ भी लगाए जाते हैं।

क्या है ग्रीन इस्लाम?

 ग्रीन इस्लाम मूल रूप से एक विचार है, जिसके तहत मस्जिदों और मदरसों के जरिए, वहां के लोगों को जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों के बारे में जागरूक किया जाता है। इस मुहिम को सफल बनाने के लिए उदाहरण के तौर पर कुरान की उन आयतों का हवाला देते हैं जिन में कहा गया है कि "इस धरती को नष्ट मत करो"  हैम्बर्ग यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर मोनिका आर्नेज के मुताबिक "ग्रीन इस्लाम के अलग-अलग मायने हो सकते हैं। मुझे लगता है कि यह एक रास्ता है पर्यावरण तक पहुंचने का, जिसमें इस्लाम जुड़ा हुआ है। इसका मतलब यह है कि मुसलमान पारिस्थितिक रूप से पर्यावरण की तरफ ज्यादा सकारात्मक बर्ताव करता है और इस काम के लिए कुरान एक औजार के रूप में काम करता है।"

मदरसों में भी ग्रीन इस्लाम की पढ़ाई

इंडोनिशिया में मदरसों को 'पेसेनतरनÓ कहा जाता है । यहां पर्यावरण के बारे में तब से पढ़ाया जा रहा है, जब किसी को पिघलते ग्लेशियर या समंदर के बढ़ते जलस्तर की चिंता भी नहीं थी।19वीं सदी से ही मदरसों में पर्यावरण की सुरक्षा के बारे में बच्चों को जागरूक बनाया जा रहा है। बच्चों को पर्यावरण संरक्षण सिखाया जाता है। मदरसों के भीतर पेड़ भी लगाए जाते हैं। यहीं नहीं पर्यावरण को बचाने के लिए फतवे भी जारी किए जाते हैं।  डॉक्टर आर्नेज कहती हैं कि उलेमा अक्सर पर्यावरण को बचाने के लिए फतवे जारी करते हैं और मुस्लिम समुदाय के लोग इसका पालन भी करते हैं। इससे उलेमाओं को आदर्श बनने का मौका मिलता है।"

बड़ी तबाही झेलचुका है इंडोनेशिया
दरअसल पिछले कुछ सालों में इंडोनिशिया पर जलवायु परिवर्तन का भारी असर पड़ा है। लगातार समंदर का जलस्तर बढऩे और मूसलाधार बारिश से राजधानी जकार्ता में सैकड़ों घर बर्बाद हो चुके हैं। अक्सर भूकंप के झटकों की वजह से एकेह द्वीप और जावा द्वीप के तटीय इलाके बर्बाद हो चुके हैं। इंडोनिशिया के मुसलमान इन बदलाव पर अलग-अलग प्रतिक्रिया देते हैं। किसी को लगता है कि यह अल्लाह का अजाब (प्रकोप) है। उनके मुताबिक कुछ लोगों के गलत कामों से खुदा नाराज हो गया है, तो कुछ लोग इसे कुदरती इम्तिहान के तौर पर देखते हैं।

बौध्द भिक्षु भी पीछे नहीं
इंडोनिशिया के उलेमा ही नहीं, थाईलैंड के बौद्ध भिक्षु भी पर्यावरण को बचाने के लिए डटे हुए हैं। जंगलों की कटाई के खिलाफ बौद्ध भिक्षु अभियान चला रहे हैं। जंगल भिक्षु के नाम से भी मशहूर बौद्ध भिक्षु 1980 के दशक आखिर और 1990 के दशक की शुरुआत से काम कर रहे हैं। आम तौर पर भिक्षु जंगल में पेड़ों पर एक लाल पट्टी बांध देते हैं, ताकि वह पेड़ पवित्र हो जाए और कोई उसे काटने की हिम्मत न कर सकें, क्योंकि बोद्ध मत के मुताबिक भगवान गौतम बुद्ध को भी पेड़ के नीचे ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। बौद्ध भिक्षु लोगों से पेड़ न काटने की अपील करते हैं। वह कहते हैं कि जंगलों में पूर्वजों की आत्मा रहती है। अगर वे जंगल काटते हैं तो उनके साथ कुछ बुरा हो सकता है। भिक्षु लोगों को चेताते हैं कि जंगल काटने वाला ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को बुरे परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। दरअसल निर्माण और गैरकानूनी जंगल की कटाई से थाईलैंड मुख्य जंगल करीब करीब खत्म हो गए हैं।

धर्म को आगे आना होगा
जानकारों का कहना है कि धर्म के जरिए पर्यावरण को बचाने का विचार काफी अच्छा और प्रभावशाली है। उनके मुताबिक धर्म के जरिए वातावरण को साफ बनाने का लक्ष्य पाना आसान है।

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