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Corona के इंफेक्शन से बचने के लिए WHO से भी ज्यादा कारगर है इस्लामिक उसूल

मो. इफ्तेखार अहमद
दुनियाभर में कोरोना वायरस की महामारी फैलने के बाद इसके इंफेक्शन से बचने के लिए तरह-तरह के बचाव के उपाय किए जा रहे हैं। हर तरफ WHO की गाइडलाइन को इससे बचने का एक मात्र सहारा माना जा रहा है, लेकिन मजहब-ए-इस्लाम में अल्लाह और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अब से तकरीबन साढ़ें 14 सौ साल पहले इंसानियत को वो आला तालीम दे चुके हैं, जिस पर अमल कर इंसान न सिर्फ कोरोना वायरस के इंफेक्शन से, बल्कि हर तरह के इंफेक्शन से बच सकता है। पेश है इंफेक्शन से बचने के लिए चन्द इस्लामी उसूल।

1-महामारी में आवागमन पर रोक: हदीस की किताब सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम की हदीस के मुताबिक पैगम्बर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है, “जब तुम किसी स्थान पर ताऊन (महामारी) के प्रकोप के बारे में सुनो, तो उस जगह पर प्रवेश न करो, लेकिन जब यह महामारी तुमहारे इलाके में फैल जाए और तुम उसी स्थान पर हो, यानी वहां से बाहर न निकलो।”  लिहाजा, इस पर अमल करके कोरोना की महामारी से पूरी इंसानियत की हिफाजत की जा सकती है। यही वजह है कि सऊदी सरकार ने अपने मुफ्तियों की सलाह पर एक भी मौत नहीं होने के बावजूद पूरे देश को लॉक डाउन कर दिया है। वहीं,  चीन ने इसी तरीके को अपना कर कोरोना को कंट्रोल किया है और दुनियाभर के दूसरे देशों में भी इस पर अमल हो रहा है।

2-बीमार को सेहतमंद से दूर रखना: सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम में पैगम्बर हजरत मोहम्मद  सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान है, “बीमारी से पीड़ित शख्स को स्वस्थ लोगों के पास न लाया जाए।” लिहाजा, इस हदीस पर अमल करके इस वक्त कोरोना समेत सभी तरह के इंफेक्शन को फैलने से रोका जा सकता है।  

3- स्वच्छता: इस्लाम धर्म में स्वच्छता को आधा ईमान बताया गया है। आज के इस वैज्ञानिक युग में हम सभी जानते है कि गंदगी सभी तरह की बीमारियों और वायरस की जननी है। लिहाजा, अपने आपस के इलाके और खुद को स्वच्छ रखकर पूरी इंसानित को तमाम तरह के वाइरस के अटैक से बचाया जा सकता है।

4- इस्तिंजा: टॉयलेट और यूरीन रूम वायरस का सबसे बड़ा ठिकाना होता है। लिहाजा, इस्लाम धर्म में टॉयलेट और यूरीन करने के बाद गुप्तांगों को पानी से धोना (इस्तिंजा करना) अनिवार्य है, जो इंसान को कई तरह के गंभीड़ इंफेक्शन से बचाता है। गौरतलब है कि मजहब-ए- इस्लाम में टीश्यू पेपर के लिए कोई जगह नहीं है, जो कई तरह के इंफेक्शन का कारण बनता है।

5- वजू- इस्लाम धर्म में टॉयलेट और यूरीन करने के बाद और नमाज से पहले वजू का हुक्म दिया गया है। इसका सबसे बड़ा लाभ ये है कि टॉयलेट और यूरीन के बाद इंसान के खुले हुए अंग पर जो भी कीटाणु होते हैं, वह वजू करने से पूरी तरह साफ हो जाता है और इंसान बीमारी की चपेट में आने से बच सकता है।

6-छींकने के वक्त सावधानी: इस्लाम धर्म में छींक आने पर नाक को रुमाल से ढंकना और अगर रुमाल या कोई कपड़ा नहीं हो तो अपने दोनों हाथों से नाक ढंकना सुन्नत है। इस पर सख्ती से अमल करके एक शख्स के इंफेक्शन को दूसरे में फैलने से रोका जा सकता है।

5- खाने से पहले हाथ धोना: इस्लाम धर्म में खाना खाने से पहले हाथ धोना और बिना हाथ पोछे गीले हाथ से ही खाना खाना सुन्नत है। इस सुन्नत पर अमल करके पूरी इंसानियत कई तरह के वायरस के अटैक से खुद को बचा सकती हैं, क्योंकि खाने से पहले हाथ पोछने से रूमाल में रहने वाले वायरस फिर से हाथ से चिपक सकता है और खाने के साथ मानव शरीर में प्रवेश कर उसे बीमार कर सकता है।

7-पानी पीने की सुन्नत: सुन्नत के तरीके से पानी पीकर भी इंफेक्शन के फैलने से बचा जा सकता है। दरअसल, सुन्नत के मुताबिक तीन सांस में पानी पीना चाहिए और पानी पीते वक्त सांस नहीं लेना चाहिए, जब कोई शख्स इस सुन्नत के मुताबिक पानी पीता है और बर्तन में सांस नहीं लेता है तो इससे पानी का बर्तन इंफेक्ट नहीं होता है। वहीं, पानी पीते वक्त सांस लेने से एक शख्स के अंदर का वायरल गिलास में जता जाता है और जब कोई दूसरा शख्स उसी गिलास से पानी पीता है तो वह भी उस बीमारी की चपेट में आ जाता है।

8- सुन्नत के तरीके से खाना खाना: खाना खाते वक्त सुन्नत पर अमल भी इंसान को इंफेक्शन से बचाता है। जैसे रोटी दांत से काटकर नहीं खाना। मसलन इतना बड़ा लुकमा नहीं लें, जिसे आधा ही दांत से काटकर खाना पड़े और आधे को दूसरी मर्तबा फिर से सब्जी से लगाकर कर खाया जाए। ऐसा करने से आपके मुंह का वायरस सब्जी में चला जाता है और जब कोई साथ खाने वाला उस सब्जी को खाता है तो वह भी उस बीमारी की चपेट में आ जाता है।

9- हाथ से खाना खाना: हाथ से भोजन करना सुन्नत है, लेकिन खुद को तरक्की याफ्ता कहने के चक्कर में चम्मच से भोजन खाना कुछ लोग अपनी शान समझते हैं, जो अंजाने में हमें इंफेक्शन का शिकार बना देता है। दरअसल, जब हम हाथ से खाना खाते हैं तो हम सिर्फ खाने के लुकमे को मुंह के अंदर डालने के लिए हाथ का इस्तेमाल करते हैं। हमारा हाथ मुंह में नहीं जाता है। वहीं, जब हम चम्मच या फॉर्क  से खाना खाते हैं तो खाने के साथ चम्मच या फॉर्क भी मुंह में जाता है, लिहाजा चम्मच और फॉर्क के साथ मुंह का थूक भी लग जाता है और जह दूसरी बार खाने के लिए चम्मच को खाने में डालते हैं तो मुंह के थूक के साथ वारयस चम्मच के जरीए खाने में चला जाता है। इस दौरान अगर कोई दूसरा भी खा रहा हो तो वह भी उस बीमारी का शिकार हो जाता है। 

10- बिना वजह बाहर न जाना: बाजार और भीड़भाड़ वाले इलाके को शैतानों का अड्‌डा बताते हुए बिना किसी काम के बाजार और भीड़भाड़ वाले इलाके में जाने से इस्लाम धर्म में मना किया गया है, लिहाजा इस पर अमल करके इंफेक्शन के फैलने से भी बचा जा सकता है।

11- हलाल मीट: मांसाहारी (गोश्त खाने वालों) के लिए इस्लाम धर्म में झटके या फिर मरे हुए जानवर का मीट हराम किया गया है। गौरतलब है कि किसी भी जीव में उसका खून उसके शरीर में वायरस के रहने की मुख्य जगह है। लिहाजा, अच्छे से खून निकल जाने से मीट वायरस से पाक हो जाता है, जिसका मानव पर बुरा असर नहीं पड़ता है।

12- हलाल जानवर का मीट: इस्लाम धर्म में मांसाहार तो जायज है, लेकिन सभी जानवरों का मीट खाना जायज नहीं है। जैसे, शेर, चीता, कुत्ता, बंदर, गधा, सुअर, सांप, चूहा, छुछंदर जैसे वहशी जानवरों के मीट खाना हराम है। अब विज्ञान भी इस बात की पुष्टि करता है कि ऐसे पशुओं का मीट खाने से मानव शरीर पर इसका बुरा असर पड़ता है। जैसा कि कहा जाता है कि स्वाइन फ्लू सुअर से और कोरोना चमगादड़ से फैला है। इसे ऐसे भी समझिए कि जिन जानवरों का दूध दुनिया के सभ्य समाज में पीना पसंद किया जाता है, उसी का मीट खाना भी जायज है। लिहाजा, हराम जानवरों के गोश्त से बचकर भी कई तरह की इंफेक्शन से पूरी मानवता को बचाया जा सकता है। 
अल्लाह से उम्मीद: इसके अलावा अल्लाह तआला कुरआन शरीफ की सूरत यूनुस की आयत नम्मबर 107 में फरमाते हैं कि “यदि अल्लाह तुम्हें किसी तकलीफ़ में डाल दे तो उसके सिवा कोई उसे दूर करनेवाला नहीं और यदि वह तुम्हें कोई भलाई पहुंचाना चाहे, तो कोई उसके अनुग्रह को रोकने वाला नहीं। वह अपने बंदों में से जिसे चाहता अपना अनुग्रह प्रदान करता है और वह अत्यंत क्षमाशील, दयावान है।" वहीं, सूरत ग़ाफिर की आयत नम्बर 60 में अल्लाह फरमाते हैं कि ‘‘और तुम्हारे पालनहार ने कह दिया है कि मुझे पुकारो, मैं तुम्हारी दुआ स्वीकार करूँगा।'' लिहाजा इस मुसीबत के वक्त में सभी को ऊपर बताए गए इस्लामी तरीकों पर अमल करने के साथ ही अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगकर पूरी उम्मीद के साथ इस वबा से छुटकारे की दुआ करनी चाहिए।

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