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नेक कोशिश बेकार नहीं जाती

देशभर के नौजवानों और छात्रों को नौकरी और स्कूल-कॉलेज में प्रवेश के लिए अंकसूचियों व चरित्र प्रमाण-पत्र की फोटोकॉपी राजपत्रित अधिकारी से प्रमाणित कराने या फिर कोर्ट कचहरी से शपथ-पत्र बनवाने के लिए फालतू में चक्कर काटने पड़ते हैं।

युवाओं की इसी समस्या को उठाते हुए हमने वर्ष 2010 में एक लेख में कुछ सुझाव दिए थे, जिसे प्रशासनिक आयोग ने उचित मानते हुए शब्दश: लागू कर दिया है। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट में 'सिटीजन सेंट्रिक एडमिनिस्ट्रेशन-हार्ट ऑफ गर्वेनेंस में स्वप्रमाणित की व्यवस्था को अमल में लाने की संस्तुति की गई है। सेल्फ सर्टीफिकेशन की व्यवस्था सिटीजन फ्रैंडली है।

रिपोर्ट में संस्था प्रमुखों से कहा गया है कि वे विभिन्न प्रकार के आवेदन पत्रों के साथ शपथ-पत्र लगाने व दस्तावेजों को राजपत्रित अधिकारियों से प्रमाणित कराने की वर्तमान व्यवस्था की आवश्यकता की समीक्षा करने के बाद सक्षम अधिकारी से अनुमोदन लेकर स्वप्रमाणित व्यवस्था लागू करें। प्रशासनिक सुधार विभाग के सचिव संजय कोठारी के पत्र में कहा गया है कि राजपत्रित अधिकारियों या फिर नोटरी से सर्टीफिकेट की प्रतियां प्रमाणित कराने की व्यवस्था न केवल अफसरों के मूल्यवान समय की बर्बादी है, बल्कि शपथ-पत्र बनवाना व दस्तावेजों को राजपत्रित अधिकारी से प्रमाणित कराना पैसे की भी बर्बादी है।
लेख पढ़ने के लिए इस लिंक पा जाएं http://www.topideology.blogspot.in/2010/10/blog-post.html

1 comment:

  1. This is not only the wastage of money and time but it is freedom from mental torture faced by the candidates and that too the real and needy people. This was an age old worn out system.

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