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Pertol-Diesel Price: घातक होगा नियंत्रण मुक्त डीजल

मो. इफ्तेखार अहमद,
Petrol Fuel Price: देश में खुदरा महंगाई दर (Retail Inflation) दहाई के अंक पर बनी हुई है। महंगाई कम करने के नाम पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (Reserve Bank of India) ब्याज दरों (Interest Rate) को ऊंचा बनाए हुए है। जिससे देश में औद्योगिक उत्पादन दर ऋणात्मक हो चुकी है। नतीजतन, नई नौकरियों के अवसर पैदा नहीं हो रहे और बेरोजगारी बढ़ रही है। इन सबके बावजूद महंगाई के इंजन का ईंधन समझे जाने वाले डीजल के दाम में तेल कंपनियों ने एक पखवाड़े में 1.45 रुपए  प्रति लीटर की बढ़ोतरी कर दी है, जो एक बार फिर उद्योगों और किसानों पर कहर बरपाएगी।
   
दरअसल, पेट्रो कीमतों में बढ़ोतरी की स्क्रिप्ट वित्त मंत्री पी.चिदंबरम ने बजट में ही लिख दी थी।  बजट भाषण के दौरान  चिदंबरम ने वित्तीय घाटा कम करने और अर्थव्यवस्था में जान डालने के नाम पर पेट्रोलियम पदार्थों पर सब्सिडी खत्म करने की बात कही थी। जिसका असर बजट के अगले ही दिन पेट्रोल की कीमत पर 1.40 रुपए की वृद्धि के रूप में देखने को मिला। इस मूल्य वृद्धि पर आम जनता और राजनीतिक दलों की ओर से कोई खास प्रतिक्रिया नहीं हुई। इससे प्रोत्साहित होकर तेल कंपनियों ने बजट के दूसरे ही दिन डीजल के दाम में एक रुपए की और वृद्धि करने की हिमाकत कर दी।

तेल कंपनियां अपने फैसले को जायज ठहराने के लिए तर्क दे रही हैं कि डीजल महंगा करने के बाद भी कंपनियों को 10.27 रुपए प्रति लीटर का घाटा हो रहा है। वित्तीय वर्ष 2013 में सस्ता डीजल बेचने से कंपनियों को 86,000 करोड़ रुपए का घाटा होने का अनुमान है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल की कीमत 121.57 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 131 डॉलर प्रति बैरल हो गई है। इसके अलावा डॉलर के मुकाबले रुपया भी कमजोर है। इन वजहों से डीजल के दाम में इजाफा करना पड़ रहा है।
   
    जून 2010 में पेट्रोल को नियंत्रण मुक्त किए जाने के बाद से तेल कंपनियां अंतरराष्ट्रीय कीमतों के आधार पर पेट्रोल की घरेलू कीमतें तय कर रही हैं। जब सरकार ने पेट्रोल को नियंत्रण मुक्त किया था, तब इस फैसले पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं हुई, क्योंकि पेट्रोल के मूल्य में वृद्धि का अर्थव्यवस्था पर उतना सीधा असर नहीं पड़ता, जितना कि डीजल के मूल्य में बढ़ोतरी का होता है। एक पखवाड़े में दो बार डीजल के मूल्य में वृद्धि से साफ हो गया है कि अब सरकार डीजल को भी नियंत्रण मुक्त करने की राह पर है, लेकिन सरकार के लिए ये फैसला घातक साबित होगा। यदि ऐसा हुआ तो सरकार खुद ही डीजल के बढ़े मूल्य की तपिश में स्वाहा हो जाएगी। क्योंकि, डीजल की मूल्य वृद्धि और महंगाई में सीधा संबंध है। डीजल के दाम बढ़ते ही महंगाई बढ़ जाती है। लिहाजा, मूल्यों पर नियंत्रण के लिए डीजल पर पूर्ण सरकारी नियंत्रण जरूरी है। डीजल को मार्केट के हाल पर नहीं छोड़ा जा सकता। डीजल  को नियंत्रण मुक्त करने से किसी औद्योगिक घराने के बंद पड़े पेट्रोल पंप दोबारा खुल तो सकते हैं, लेकिन इसका समाज और अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। देश में कोई मानक मूल्य निर्धारण पद्धति नहीं होने के कारण डीजल के दाम बढऩे से इससे प्रभावित होने वाले सभी घटक (ट्रांसपोर्टर, व्यापारी, उद्यमी और सेवादाता) अपने-अपने उत्पादों और सेवाओं के दाम बढ़ा तो देते हैं, लेकिन मूल्य घटने पर कभी भी मूल्यों में कमी नहीं करते। साथ ही उनके द्वारा मूल्यों में की गई वृद्धि भी डीजल में हुई वृद्धि के अनुपात से कई गुना ज्यादा होती है, लिहाजा डीजल पर सरकार का नियंत्रण होना अति आवश्यक है।
    सरकार यदि वास्तव में तेल कंपनियों को राहत देना चाहती है, तो कच्चा तेल पर लगने वाले आयात शुल्कों के साथ ही राज्य स्तर पर लगने वाले वैट की दरों में भी कमी का प्रावधान करने के लिए कदम उठाए। यदि सरकार के दिग्गज अर्थशास्त्रियों को लगता है कि ऐसा करने से कर राजस्व का नुकसान होगा, तो उन्हें ये भी सोचने की जरूरत है कि डीजल मूल्य वृद्धि से बढ़ी महंगाई से सरकारी खर्चों पर भार पड़ेगा । यानी डीजल का दाम बढ़ाने से सरकार को तात्कालिक लाभ तो मिल सकता है, लेकिन यह समस्या का हल नहीं है। इससे सिर्फ और सिर्फ महंगाई ही बढ़ेगी । जिससे सभी परियोजनाओं और योजनाओं की लागत बढ़ जाएगी। उसे पूरा करने के लिए ज्यादा बजट की दरकार होगी। इसके अलावा अपने कामगारों को भी ज्यादा महंगाई भत्ता देना होगा वह अलग। यदि यही राशि सरकार तेल कंपनियों को सब्सिडी के तौर पर दे दे तो तेल कंपनियों की हालत सुधर सकती है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करे और डीजल को बाजार के हवाले करने जैसी की गलती न करे।

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