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आम आदमी है कौन?

संसद का बजट सत्र नजदीक है। चारों तरफ आम आदमी के हित की बात हो रही है। सरकार को आम आदमी के लिए ये करना चाहिए, वो करना चाहिए। चारों तरफ विद्वान लोग अपनी विद्वत्ता दिखा रहे हैं। लेकिन, जिस आम आदमी के लिए बात हो रही है। वह अपने आप में एक अनसुलझी पहेली के समान है। किसी को भले ही पता हो, लेकिन कम से कम मुझे तो अभी तक आम आदमी की परिभाषा ही समझ में नहीं आई है। ये एक ऐसा सवाल है जो मुझे 2008 से कंचोड़ रहा है। हमने कई लोगों से इसका उत्तर जानने की कोशिश की, लेकिन अब तक हमें इसका संतोषजनक उत्तर नहीं मिला है। सवाल बुहत ही सरल है कि आम आदमी है कौन? विद्वानजनों से निवेदन है कि अगर आप बता सकें तो बताने का कष्ट करें। शर्त एक है कि इस पूरी स्टोरी को पढऩे के बाद जवाब लिखने का कष्ट करें।
    पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान वर्ष 2008 में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आयोजित एक सेमीनार में जाने का मौका मिला। सेमीनार में कई विद्वानों को सुनने का मौका मिला। सभी साथियों ने सेमीनार के दौरान न सिर्फ अपने ज्ञानेन्द्रियों को खूब संतृप्त किया, बल्कि प्रश्न पूछकर विद्वानों को बगलें झांकने पर मजबूर भी किया। खैर किसी तरह सेमीनार का समापन हुआ। इस मौके पर हमारे यूनिवर्सिटी के कुलपति ने हमारी मुलाकात सेमीनार में आकर्षण के केन्द्र रहे अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव एससी बेहार से कराई। सेमीनार में तो हम लोगों ने प्रश्न पूछकर उन्हें परेशान किया था। लेकिन, अब उनकी बारी थी। उन्होंने एक सावल पूछा कि आम आदमी कौन है? हम में से किसी ने कहा दिहाड़ी वाले। किसी ने कहा किसान। किसी ने कहा नौकरी पेशा लोग और वह सिर हिलाकर ना कहते रहे। जब सभी ने अपनी-अपनी बातें कह दी तब उन्होंने कहा कि अगर सरकार किसान को आम आदमी मानते हुए न्यून्तम समर्थन मूल्य बढ़ा देती है। तो खाद्यान्न महंगे हो जाते है और फिर लिखा जाता है कि महंगाई से आम आदमी परेशान है। अगर नौकरी पेशा लोगों को आम आदमी मानकर उसकी सेलरी बढ़ा दी जाती है। तो बाजार में मुद्रा का फ्लो बढ़ जाने से महंगाई बढ़ जाती है। जब सरकार ऑटो वालों को आम आदमी मानकर उसका किराया बढ़ा देती है तो आम आदमी की जेब कटने लगती है। रिटेलर विक्रेताओं को आम आदमी मानकर उनका कमीशन बढ़ा देती है। तो चीजे महंगी हो जाती है, जिससे आम आदमी की परेशानी बढऩे लगती है। दिहाड़ी वालों को आम आदमी मानकर उनकी मजदूरी बढ़ा दी जाती है तो उत्पादन लागत बढ़ जाती है। इससे महंगाई बढ़ती है और एक बार फिर आम आदमी परेशान हो जाता है। अब सवाल ये पैदा होता है कि आखिर आम आदमी है कौन। सरकार को किसको मद्देनजर रखकर पॉलिसी बनानी चाहिए?

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