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आडवाणी और भाजपा का दोहरा चरित्र




मोहम्मद इफ्तेखार अहमद,

भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने देशभर में भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगाने के लिए जय प्रकाश नारायण के पैतृक गांव सिताब दियारा से अपनी पूर्व नियोजित रथयात्रा की शुरुआत कर दी है। कॉमनवेल्थ और 2जी स्पेट्रम घोटाले की शर्मिंदगी झेल रही यूपीए सरकार उनके निशाने पर है। वे भ्रष्टाचार के मुद्दे पर यूपीए और कांग्रेस को ऐसे घेर रहे हैं, मानो भाजपा देवदूतों की पार्टी है और इसमें भ्रष्टाचार नाम की कोई चीज है ही नहीं।
    दरअसल, आडवाणी को हाल ही में हुए बड़े घोटालों के पर्दाफाश से अपने लिए अनुकुल माहौल दिख रहा है। क्योंकि, देश भले ही दिन प्रतिदिन भ्रष्टाचार के गर्त में जा रहा हो और 'ये सब तो चलता हैÓ के नाम पर भ्रष्टाचार को समाज में भी स्वीकृति मिल गई हो, लेकिन इतिहास बताता है कि जब-जब किसी सरकार पर बड़े घोटाले के आरोप लगे हैं, उस सरकार को सत्ता गंवानी पड़ी है। मसलन, बोफोर्स कांड के बाद राजीव गांधी की सरकार चली गई, तो तहलका के बाद एनडीए का शाइनिंग इंडिया का नारा फ्लॉप हो गया। भाजपा केन्द्र में एक बार पूर्णकालिक सरकार बनाने के बाद दोबारा सत्ता के लिए आज तक संघर्ष ही कर रही है। इसी लक्ष्य को साधने के लिए आडवाणी रथ यात्रा से बहुत आशान्वित हंै, लेकिन सवाल है कि क्या भ्रष्टाचार सिर्फ एक ही सरकार में या पार्टी में व्याप्त है, जिसका पर्दाफाश कर और लोगों को उस सरकार और पार्टी के खिलाफ जागरूक कर इस अभिशाप से मुक्ति मिल जाएगी? ऐसा कतई नहीं है। चोर-चोर मौसेरे भाई की तरह आज सभी पार्टियों में बैठे कुछ भ्रष्ट नेता देश को मिल बांटकर लूट रहे हैं।
आडवाणी का भ्रमण तो सिर्फ जनता को भ्रम में डालने और सत्ता तक पहुंचने  की राजनीतिक चाल भर है। इस यात्रा को भ्रष्टाचार के खिलाफ दुष्प्रचारित कर आडवाणी सिर्फ सत्ता सुख भोगना चाहते हैं। अगर हकीकत में आडवाणी भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं तो उन्हें सबसे पहले अपनी पार्टी और भाजपा शासित राज्यों के उन मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई करवानी चाहिए, जो आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हंै। कर्नाटक का नाटक आज किसी से छिपा नहीं है। माइनिंग घोटाले में घिरे रेड्डी बंधुओं को किस तरह सालों से भाजपा बचाती रही। यहीं नहीं येदियुरप्पा भी भूमि घोटाले में फंसकर कर्नाटक के न केवल मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवा बैठे बल्कि अब तो जेल की रोटियां तोड़ रहे हैं। उत्तराखंड में भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे खंडूरी से भाजपा ने लोकसभा चुनाव में हार के बाद कुर्सी छीन ली गई, लेकिन इसके बाद जिस रमेश पोखरियाल निशंक को सत्ता सौंपी गई, वह तो इससे भी बड़े वाले निकले, लेकिन सजा के तौर पर भाजपा ने बस उनसे कम बदनाम खंडूरी को सत्ता की बागडोर एक बार फिर से शायद ये सोचकर थमा दी कि जनता खंडूरी का इतिहास भूल चुकी है।
 छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी भ्रष्टाचार की संड़ाध इस हद तक पहुंच गई है कि चारों ओर इसकी बदबू सूंघी जा सकती है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अपने ही भू-माफिया मंत्री के आगे बेबस हैं। इसकी शिकायत पार्टी आला कमान तक हो चुकी है, लेकिन किसी में इतनी ताकत नहीं कि उन्हें जेल भेजना तो दूर पद से भी हटा दें। इसकी वजह ये है कि वह संघ जुड़े जनाधार वाले नेता हैं। यानी भले ही भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हों, लेकिन भाजपा को चाहिए जनाधार वाले नेता। कुछ ऐसी ही हालत छत्तीसगढ़ की है। यहां तो मंत्रियों का भ्रष्टाचार इस कदर बढ़ चुका है कि मुख्यमंत्री अपने मंत्रियों की गुप्त रिपोर्ट हासिल कर सारा का सारा काला चिठ्ठा केन्द्रीय आलाकमान को भेज चुके हैं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर मंत्रियों को दिल्ली तलब कर सिर्फ चरित्र सुधारने की नसीहत मात्र दी गई। छनकर जो खबरें आई उसमें बताया गया कि कार्रवाई करने से स्वयं मुख्यमंत्री ने ही मना किया, क्योंकि भ्रष्टाचार में डूबे ये मंत्री जनाधार वाले नेता हंै। इनको मंत्रिमंडल से निकालने पर पार्टी के जनाधार पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। छत्तीसगढ़ के पीडब्ल्यूडी मंत्री के खिलाफ सड़क निर्माण के कार्य में जुटे कनाडाई ठेकेदार मीर अली ने तो 10 लाख डॉलर रिश्वत मांगने की शिकायत खुद मुख्यमंत्री से की। मीर अली से इस विशाल राशि की रिश्वत मांगी गई और रिश्वत नहीं देने पर घटिया काम होने की सिफारिश कर उनका लाइसेंस भी रद्द करवा दिया गया। इससे सुरक्षा निधि के तौर जमा 40 लाख डॉलर की राशि भी जब्त खाते में चली गई।
इस खबर की चर्चा भारतीय मीडिया में भले ही नहीं या फिर कम हुई हो, लेकिन इस खबर ने कनाडाई मीडिया में भारत की इज्जत पर खूब बट्टा लगाया। इस खबर की हेडिंग बनी थी 'भारत में निवेश की कीमत चुका रहे हैं मीरÓ और कॉमनवेल्थ घोटाला, एवं 2जी घोटाले की चर्चा कर भारत को दुनिया के भ्रष्टतम देश साबित करने की पूरी कोशिश हुई। एक तरफ सरकार विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए करोड़ों बहा रही है। वहीं दूसरी ओर भ्रष्ट नेताओं की वजह से देश की छवि खराब हो रही है। निवेशकों अलग से भारत आने से कतराने लगे हैं। उधर, राज्य की सड़कें प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार की पोल खोल रहीं हैं। छह महीने से लेकर साल भर पहले बनाई गई सड़कें एक ही बरसात के बाद गढ्ढों और धूल के गुब्बार में तब्दील हो चुकी हैं। इसके बावजूद मंत्री जी आज भी अपने पद पर बने हुए हैं। अगर कांग्रेस का कोई मुख्यमंत्री या केन्द्रीय मंत्री (यूपीए) भ्रष्टाचार के आरोप से घिरता है तो बीजेपी नेता इसकी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी पर डालते हैं। मनमोहन सिंह से इस्तीफा मांगते हैं। एक के बाद एक कांग्रेस नेता और केन्द्रीय मंत्रियों के जेल जाने से प्रफुल्लित भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी खुश होकर कहते हैं कि यूपीए सरकार में भ्रष्टाचार इस कदर फैल चुका है कि आने वाले दिन में कैबिनेट की बैठक तिहाड़ में होगी। फिर मनमोहन सिंह के जेल जाने की बारी आएगी। उस मनमोहन सिंह को जो कहते हैं कि अगर किसी को शक हो तो मेरी और मेरे परिवार के सदस्यों की संपत्ति की जांच करा लें। क्या ऐसा दावा पूंजीपति गडकरी सपने में भी कर सकते हैं। अगर यूपीए में फैले भ्रष्टाचार पर मनमोहन और सोनिया जिम्मेदार हैं तो भाजपा के नेताओं और मंत्रियों में फैले भ्रष्टाचार पर गडकरी और आडवाणी को दोषी क्यों नहीं माना जाना चाहिए ?
भाजपा का चरित्र समझने के लिए इन दृष्टांतों पर नजर डालें। बाबा रामदेव और अन्ना हजारे पर कार्रवाई करने पर भाजपा घडिय़ाली आसूं तो बहाती है, लेकिन उत्तराखंड में भाजपा सरकार की बेरुखी और पूंजीवाद परस्ती के कारण गंगा बचाने के लिए अनशन कर अपनी जान देने वाले स्वामी निगमानन्द की उसे याद नहीं आती है। इतना ही नहीं हजारे और रामदेव मामले में केन्द्र सरकार पर देश में इमरजेंसी जैसे हालात पैदा करने का आरोप लगाने वाली भाजपा, मोदी के खिलाफ मुंह खोलने वाले अधिकारियों को एक-एक कर झूठे आरोपों में जेल में ठूंसने पर आखिर क्यों मुंह नहीं खोलती? गुजरात के लोगों को एक तानाशाह द्वारा लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों का खुलेआम हनन करने पर आखिर भाजपा का लोकतंत्र प्रेम कहां चला जाता है? यानी जहां राजनीतिक बिसात बिछानी हो तो लोकतंत्र की दुहाई और जब अपनी सिद्धि हो तो तानाशाह की अगुवाई।
जहां तक बात भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने की है, तो यूपीए सरकार को पूर्ववर्ती एनडीए सरकार से ज्यादा ही नम्बर दिए जा सकते हैं। कम से कम यूपीए काल में भ्रष्टाचार की पोल खुलने पर बड़े से बड़े नेता व मंत्री के खिलाफ कार्रवाई हो रही है। वे सभी जेल की सलाखों में हैं, लेकिन क्या आडवाणी और गडकरी एनडीए का इतिहास याद करना चाहेंगे। जब निवर्तमान रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिज पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो भाजपा ने क्या किया? जॉर्ज को तो देश की जनता के दबाव में चंद दिनों के लिए पद से हटा दिया गया, लेकिन जांच पूरी होने से पहले ही दोबारा मंत्री के पद पर सुशोभित कर दिया। जिसे विपक्ष ने कभी स्वीकार नहीं किया, लेकिन नैतिकता की दुहाई देने वाली भाजपा ने कभी भी विपक्ष के विरोध का संज्ञान नहीं लिया। इतना ही नहीं, जॉर्ज पर लगे आरोप की जांच करने के बजाए, तहलका के संपादक तरुण तेजपाल द्वारा कराए गए स्टिंग ऑपरेशन की सच्चाई की जांच हुई । तरुण तेजपाल  और उनकी टीम को जेल में डाल दिया गया। तब भाजपा की लोकतांत्रिक सोच कहां गई थी? लेकिन आज आदर्श सोसाइटी घोटाला का पर्दाफाश करने वाले पत्रकार आजादी की सांस ले रहे हैं और आरोपी मुख्यमंत्री पद से हटाए जा चुके हैं। इन सबसे तो यही साबित होता है कि आडवाणी की ये रथ यात्रा सत्ता सुख भोगने की चाल मात्र है। उन्हें देश और भ्रष्टाचार से कोई लेना देना नहीं है।
सच्चाई तो ये है कि भ्रष्टाचार के हमाम में सभी नंगे हैं। दरअसल आज की राजनीति ही अर्थशात्र के उस नियम पर काम कर रही है, जिसमें बताया गया है कि बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है। आज चाहे वह कोई भी पार्टी क्यों न हो, वहां अच्छे लोग या तो आना नहीं चाहते हैं और जो हैं, वह हाशिए पर हैं, भीड़ के आगे असहाय और लाचार हैं। यानी बुरे और भ्रष्ट नेताओं ने अच्छे और ईमानदार नेता को राजनीति से बाहर या फिर किनारे लगा दिया है।

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