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Petrol-Diesel Price: महंगे डीजल से टूट जाएगी अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी

मो. इफ्तेखार अहमद,
Petrol Diesel Price Impact: हर मर्ज की दवा बनकर सत्ता में आई मोदी सरकार की हालत 'ज्यों-ज्यों दवा की मर्ज बढ़ता चला गया' जैसी हो गई है। न तो सरकार विदेश मामले संभाल पा रही है और न ही सरकार से देश की वित्तीय स्थिति ही संभल रही है। सरकार की अदूरदर्शी नीति की वजह से इस वक्त देश गंभीर आर्थिक संकट से दो-चार हो रहा है। बाजार में मांग नहीं होने से उद्योग-धंधे पूरी तरह चौपट होने से देश में बेरोजगारी चरम पर पहुंचती जा रही है। इन सबके बीच सरकार महंगाई कमकर मांग को बढ़ाने की दिशा में काम करने के बजाय पेट्रोल-डीजल (Petrol Fuel Prices)पर बेतहाशा एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर खजाना भरने में जुटी है। सरकार की इस अदूरदर्शी नीति के कारण बढ़ रही महंगाई न सिर्फ आम आदमी और किसानों पर कहर बरपा रही है, बल्कि पहले से ही चौपट हो चुकी उद्योगों के लिए भी और मुश्किलें बढ़ा देगी। अगर वक्त रहते डीजल से एक्साइज ड्यूटी को खत्म नहीं किया गया तो मेक इन इंडिया का झुनझुना भी खनकना बंद कर देगा।

ऐसा लगता है कि 'बहुत हुई महंगाई की मार, अब की बार मोदी सरकार' का नारा देकर सत्ता में आई सरकार को अब जनता के इस संवेदनशील मुद्दे से कोई सरोकार ही नहीं है। कोरोना महामारी जनित लॉकडाऩ के बीच महंगाई के इंजन का ईंधन समझे जाने वाले डीजल की कीमत ने पेट्रोल की कीमत को पीछे छोड़ दिया है। इस वक्त दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 80.43 प्रति लीटर है, जबकि डीजल की कीमत 80.53 पर लीटर हो गई है। यह सब तब हो रहा है, जब कच्चे तेल की कीमत 2003 के बाद सबसे निचले स्तर पर यानी 37.43 डॉलर पर बैरल है। दरअसल, इस सरकार ने पेट्रोल पर 32.98 पर लीटर और डीजल पर 31.83 पर लीटर एक्साइज ड्यूटी लगा दी है, जोकि दुनिया में सबसे ज्यादा है। यही वजह है कि कच्चे तेल की कीमत में आई ऐतिहासिक गिरावट का भी आम लोगों को कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है। अर्थशास्त्री मदन सबनवीस के मुताबिक इस वक्त मोदी सरकार अकेले तेल से सालाना 5.5 लाख करोड़ रुपये कमा रही है। इसमें से 3 लाख करोड़ रुपये केंद्र सरकार के हिस्से में आते हैं।

     यहां पर आपको यह जानना जरूरी है कि जिस वक्त भाजपा तेल की कीमत को लेकर हल्ला मचाती थी, उस वक्त यानी यूपीए टू की सरकार में पेट्रोल पर 9.48 प्रति लीटर और  डीजल पर मात्र 3.56 प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी थी। तब सरकार औसतन 93 डॉलर पर बैरल कच्चा तेल खरीदकर पेट्रोल 63 रुपए लीटर और डीजल 55.48 रुपए प्रति लीटर बेच रही थी। अब मोदी सरकार 37 डॉलर पर बैरल कच्चा तेल खरीदकर 80 रुपए प्रति लीटर पेट्रोल और लगभग 81 रुपए प्रति लीटर डीजल बेच रही है। यानी मनमोहन सरकार के मुकाबले एक तिहाई दाम पर कच्चा तेल खरीद रही है और राष्ट्रवाद का तड़का लगाने के बाद पहले के मुकाबले डेढ़ गुणे दाम पर पेट्रोल-डीजल बेच रही है। मौजूदा वक्त में जिस तरह से पेट्रोल के साथ ही डीजल पर भी एक्साइज ड्यूटी थोपे जा रहे हैं, उसे देखकर ऐसा लगता है कि अब न तो मोदी सरकार को लोगों की फिक्र है और न ही अर्थव्यवस्था की, क्योंकि डीजल की मूल्य वृद्धि और महंगाई के बीच सीधा संबंध है। डीजल के दाम बढ़ते ही महंगाई बढ़ जाती है। लिहाजा, मूल्यों पर नियंत्रण के लिए डीजल की कीमत पर लगाम बहुत ही जरूरी है।

अगर सरकार डीजल पर बिना सोचे-समझे लगाए गए एक्साइज ड्यूटी को वक्त रहते खत्म नहीं करती है तो पूरी अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी। इसलिए तत्काल प्रभाव से सरकार को डीजल से एक्साइज ड्यूटी को खत्म करने की जरूरत है। यदि सत्ता में बैठे महारथियों को लगता है कि डीजल से एक्साइज ड्यूटी हटाने से राजस्व का नुकसान होगा, तो उन्हें ये भी सोचने की जरूरत है कि डीजल की कीमत में इजाफे के बाद बढ़ी महंगाई से सरकारी खर्चों पर भी भार पड़ेगा। यानी डीजल के दाम बढ़ाने से सरकार को तात्कालिक लाभ तो मिल रहा है, लेकिन यह समस्या का हल नहीं है। इससे सिर्फ और सिर्फ महंगाई ही बढ़ेगी, जिससे सभी परियोजनाओं और योजनाओं की लागत बढ़ जाएगी। उसे पूरा करने के लिए ज्यादा बजट की दरकार होगी। इसके अलावा सरकार को अपने कामगारों को भी ज्यादा महंगाई भत्ता देना होगा।

लिहाजा, इस वक्त सरकार को एक्साइज ड्यूटी में कटौती कर जनता की जेब पर पड़ने वाले भार को कम करने की जरूरच है। ऐसा करने से एक तरफ उत्पादन लागत में कमी आएगी, जिससे भारतीय उद्योग दुनिया के उद्योगों का मुकाबला कर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अपना सामान बेचने के लायक बन पाएगी। वहीं, महंगाई में कमी आने से लोगों की उपभोग क्षमता बढ़ने से मांग में भी तेजी आएगी, जिससे अर्थव्यवस्था पुनः पटरी पर आ जाएगी। इसलिए सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करते हुए डीजल पर एक्साइज ड्यूटी लगाने की गलती को सुधारते हुए इसे समाप्त कर देना चाहिए।

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